The ghazal is a form of amatory poem or ode, originating in Arabic poetry. A ghazal may be understood as a poetic expression of both the pain of loss or separation and the beauty of love in spite of that pain. The ghazal form is ancient, tracing its origins to 7th-century Arabic poetry.
यह अरबी साहित्य की प्रसिद्ध काव्य विधा है जो बाद में फ़ारसी, उर्दू, नेपाली और हिंदी साहित्य में भी बेहद लोकप्रिय हुइ। संगीत के क्षेत्र में इस विधा को गाने के लिए इरानी और भारतीय संगीत के मिश्रण से अलग शैली निर्मित हुई।
इस दिल की गहराई को कोई नापता नहीं ।
काश नापता तो आज काँपता नहीं । ।
बैच दी अपनी गैरत प्यार के बाज़ार में ।
बदले में क्या मिलेगा यह जानता नहीं । ।
करता है गलती और हर बार करेगा ।
यह वह बच्चा है जो मानता नहीं । ।
अब रिश्ता भी कैसे जोड़े तुमसे यह ।
क्या करे अपना पराया पहचानता नहीं । ।
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Shidat E Dard Sy Rahat Mili Mujhy
Ek Bad Dua Sy Shafat Mili Mujhy
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Saja Hy Jaa Teri , Tasveero Sy Ghar
A Dekh Kitni Haseen Turbat Mili Mujhy
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Main Ak hi To Dua Ko Dhoondh Raha Tha
Magar Har Ass Main Furqat Mili Mujhy
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Ameer E Shair Tery Ameer Shair Main
Ba Khuda Har Gali Main Ghurbat Mili Mujhy
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Ahsan Main Kuch Aur Bhi kar Loo Magar
Tery Ishq Sy Kab Fursat Mili Mujhy
नादानी हो जाती है
जीते जीते लोगों को नादानी हो जाती है।
कोई नई बात नहीं, मरने में आसानी हो जाती है।
कब तक खामोश रहेगा, हसरतों का उबाल।
किसी गैर का हाथ पकड़ने की मनमानी हो जाती है।.
रास्ते के काँटों पर बिछा दिए बिस्तर।
अब चुभने वाली रातें सुहानी हो जाती है।
इतिहास में बवाल मचे परिंदों के मिलने पर।
ऐसी ढेरों के कहानियां जुबानी हो जाती है।
उठे उन पर पत्थर जो कभी पत्थर नहीं रहे।
ज्यादा जख्मों से भी सूरत पहचानी हो जाती है।
फटे हुए कपड़ों से निकल रहा लाल लहू।
आदत पड़ने पर गुलाब का पानी हो जाती है।
Heart Touching Ghazal
दिल को छू जाने वाली गज़लें
उसकी निगाह यह काम कर गई
उसकी निगाह यह काम कर गई।
आँखों ही आँखों में गुमनाम कर गई।
यह इश्क़ की चिंगारी क्या गुल खिला गई।
ताजिंदगी वो जां मेरे नाम कर गई।
थी किसी सोच में करने को मजबूर।
बेकाम अरमानों का मुकाम कर गई।
मिल रही थी खलिश या ख़ुशी तुझे।
कि यह हसीन जिंदगी आम कर गई।
फूल से दामन और शहद सी हंसी से।
हमें अंतिम सांस का गुलाम कर गई।
हम फिर से तेरी राह पर चलने लगे हैं
हम फिर से तेरी राह पर चलने लगे हैं।
जिसे खुद सपने भी अतीत कहने लगे हैं।।
जम गये थे दिल के किसी कोने में।
तेरी इक छुअन से फिर से बहने लगे हैं।।
साँसों ने ला दिया जोश तेरी नशीली खुशबू से।
माना रूप के ये शीशे फिर से पिघलने लगे हैं।।
वक्त की हर बात मार ने जजबातों को बुझा दिया।
पल पल हर सांस अब सुलगने लगे हैं।
इस हंसीन राह में कौन अकेला रह गया।
यह गुस्ताखी मौसम की, कि राह बदलने लगे हैं।।
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